टोक्यो ओलंपिकः भारत को आज इन पहलवानों से पदक की उम्मीद
ओलंपिक में भारत की पदक जीतने की कई
उम्मीदें अभी भी बरक़रार हैं। बुधवार को कुश्ती के दो खिलाड़ियों ने भारत को पदक
की आस जगा दी है।
ये दो पहलवान हैं, रवि दहिया और दीपक पूनिया। रवि जहां पुरुष फ़्री स्टाइल (57 किलोग्राम) कैटेगरी में खेलते हैं वहीं दीपक पुरुष फ़्री
स्टाइल (86 किलोग्राम) कैटेगरी के खिलाड़ी हैं।
कौन हैं रवि दहिया
हरियाणा के सोनीपत ज़िले के नाहरी
गांव में जन्मे रवि दहिया आज जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उसके लिए वे बीते 13 सालों से
दिन रात जुटे हुए थे।
रवि जिस
गांव के हैं, उसकी आबादी कम से कम 15 हज़ार होगी लेकिन ये गांव इस मायने में ख़ास है कि यहां से
अब तक तीन ओलंपियन निकले हैं।
महावीरसिंह
ने 1980 के मॉस्को और 1984 के लास
एजेंलिस ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था जबकि अमित दहिया लंदन, 2012 के ओलंपिक खेल में हिस्सा ले चुके थे।
इस
विरासत को रवि दहिया ने नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। महज़ 10 सालकी उम्र से उन्होंने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कोच
सतपाल के मार्गदर्शन में कुश्ती के गुर सीखना शुरू कर दिया था।
उनके इस
सफ़र में किसान पिता राकेश दहिया का भी योगदान रहा है जो इस लंबे समय में अपने
बेटे को चैंपियन पहलवान बनाने के लिए हमेशा दूध, मेवा
पहुंचाते रहे।
रवि के
पिता के संघर्ष का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि वे चार बजे सुबह उठकर पांच
किलोमीटर चलकर नज़दीकी रेलवे स्टेशन पहुंचते थे और वहां से आज़ादपुर रेलवे स्टेशन
उतरकरदो किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचते थे। यह सिलसिला बीते 10 सालों तक लगातार जारी रहा।
रवि दहिया ने सबसे पहले तब लोगों का
ध्यान आकर्षित किया जब 2015 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप
में वे सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब रहे।
इसके बाद
2018 में अंडर 23 वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी
उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया। 2019 में
एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में वे पांचवें स्थान पर रहे थे लेकिन 2020 की एशियाईकुश्ती चैंपियशिप में वे गोल्ड मेडल जीतने में
कामयाब रहे।
अपनी इस
कामयाबी को उन्होंने 2021 में भी बरक़रार रखा जब एशियाई
कुश्ती चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीत लिया था।
2019 में नूर सुल्तान, कज़ाख़स्तान
में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद उन्होंने ओलंपिक कोटा
हासिल किया था, तब से ही उन्हें पदक के दावेदारों में
गिना जाता रहा। वो सरकारी योजना टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम का भी हिस्सा रहे।
दीपक पूनिया को जानते हैं आप?
हरियाणा के झज्जर ज़िले के छारा गांव
में एक दूध बेचने वाले परिवार में पैदा हुए दीपक पूनिया ने ओलंपिक तक का सफ़र केवल
7 वर्षों में तय किया है।
उनके
पिता सुभाष, 2015 से 2020 तक
लगातार हर रोज़ अपने घर से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम
में दीपक को घर का दूध, मेवे और फल खुद पहुँचाते रहे
हैं। चाहे बारिश हो, गर्मीया सर्दी, ये सिलसिला कभी टूटा नहीं।
उनके
परिवार वाले यही चाहते थे कि दीपक को डाइट की कमी की वजह से कोई परेशानी न हो।
दीपक
पूनिया को उनके नज़दीकी लोग 'केतली पहलवान' भी कहते हैं। इसके पीछे एक मज़ेदार घटना है। दीपकजब केवल 4 वर्ष के थे तभी उनको यह उपनाम मिल गया था।
हुआ कुछ यूँ था कि गांव के सरपंच ने
दीपक को एक केतली में रखा दूध पीने के लिए दिया। दीपक ने एक झटके में सारा दूध पी
लिया। फिर सरपंच ने उन्हें एक और केतली दी, दीपक उसे
भीगटक गए। फिर एक और, फिर एक और इस तरह वह 5 केतली दूध पी गए।
सभी हैरान
रह गए कि इतना छोटा बच्चा इतना अधिक दूध कैसे पी सकता है, बस तभी से उनको 'केतली
पहलवान' बुलाया जाने लगा।
दीपक
पूनिया ने कुश्ती की शुरुआत एक अदद नौकरी पाने के लिए की थी, वो बस अपने घर का ख़र्च उठाने के लिए कुछ पैसे कमाना चाहते
थे लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और एक-एक करके वेकैडेट (2016) और जूनियर कैटेगरी (2019) में
वर्ल्ड चैंपियन बन गए।
2019 में ही नूर-सुल्तान, कज़ाख़स्तान में हुई सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर उन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई किया।
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