तमिलनाडु की कृष्णम्माल जगन्नाथन एक ऐसी दलित महिला हैं जिन्होंने भूमिहीन लोगों को ज़मीन दिलाने के लिए आंदोलन कर हज़ारों लोगों को ज़मीन का मालिकाना हक दिलाया।

वे साल 1950 में स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़ीं और ज़मींदारों को मनाया कि वे अपनी ज़मीन के कुछ हिस्से को ग़रीब भूमिहीन किसानों को दानस्वरूप दें।

साथ ही उन्होंने अपने नेतृत्व में ज़मीन का पंजीकरण महिलाओं के नाम किये जाने के लिए आंदोलन चलाया।

भूदान आंदोलन को भारत में ज़मीन सुधार का एक ऐसा आंदोलन कहा जाता है जो बिना किसी का ख़ून बहाये चलाया गया था।

इसकी शुरुआत गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित विनोबा भावे ने साल 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली से की थी।

इस आंदोलन का मक़सद अमीर ज़मीदारों को स्वेच्छा से अपनी ज़मीन का कुछ प्रतिशत भूमिहीन लोगों को दिलाना था।

कृष्णम्माल जगन्नाथ कहती हैं, ''वे एक साल तक विनोबा के साथ बिहार में पैदल चलीं। फिर विनोबा ने उन्हें कहा कि जगन्नाथन अकेले हैं, तुम उनके साथ काम करो। इसके बाद हम तिरुवल्लूर ज़िला से कांजीवरम गये। कांजीवरम के रास्ते में टी आर रामचंद्र ने हमें अपनी 100 एकड़ ज़मीन दी।''

कृष्णम्माल का जन्म तमिलनाडु के दिन्डक्कल में हुआ। वे गांधी की विचारधारा और अपनी माँ के ग़रीबी के ख़िलाफ़ चलाई गई लड़ाई से बहुत प्रभावित रही हैं और ग़रीबों को भूमि दिलाने में यही उनका प्रेरणा स्रोत भी बना।

विनोबा और अपने पति जगन्नाथन के सहयोग से वे कई ज़मींदारों से भूमिहीन लोगों को मुफ़्त और कम दाम पर ज़मीन दिलाने में कामयाब भी हुईं।

लेकिन कृष्णम्माल के लिए हमेशा ये काम इतना आसान रहा हो ऐसा भी नहीं है, कई बार उन्हें ज़मींदारों के ग़ुस्से का भी सामना करना पड़ा। लेकिन वे अपने क़दम से पीछे नहीं हटीं।

जिस गाँव में वे आंदोलन कर रही होती थीं वे वहाँ बनी रहतीं, शांतिपूर्ण बैठकें करतीं, पदयात्रा निकालतीं और अमीरों को ग़रीबों की मदद करने के लिए मनातीं। उनके इस योगदान को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी माना था और संसद में इस बारे में कहा था कि भारत में भूदान आंदोलन के तहत ग़रीबों को 30,000 एकड़ ज़मीन दी गई है।

कृष्णम्माल जगन्नाथन के अनुसार , ''ज़मींदार हमसे मिलना नहीं चाहते थे। एक दिन वे सभी नागापट्टनम के मैरिज हॉल में बैठे थे। उन्होंने मुझे बुलाया और चेतावनी दी कि मैं उनके गाँव में रोज़ ना जाया करूं और कहा कि मैं गाँव से दूर रहूँ। साथ ही, उन्होंने कहा कि अगर मैं किसी भी गाँव में पाई गई, तो वो मुझे सज़ा देंगे। मैंने उन्हें पलटकर कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से चली गई और अपना काम शुरू कर दिया।''

साल 1968 में तमिलनाडु के कीलवेनमनी में एक घटना घटी। ये एक छोटा-सा गाँव था। यहाँ खेतों में काम करने वाले 40 से ज़्यादा किसान मज़दूरों को ज़िंदा जला दिया गया था। इन किसान मज़दूरों ने अपने मेहनताने में बढ़ोत्तरी की माँग की थी।

इस घटना के तुरंत बाद कृष्णम्माल, कीलवेनमनी गईं और राज्य सरकार की मदद से वहाँ पीड़ितों को मुआवज़े के तौर पर ज़मींदारों से ज़मीन दिलवाई और बच्चों के लिए रात में स्कूल की शुरुआत की।

गांधी संग्रहालय में सचिव के एम नटराजन के अनुसार, ''वे तंजौर के कीलवेनमनी गाँव गईं, जहाँ 42 दलित मज़दूरों को ज़िंदा जलाया गया था। उन्होंने वहाँ लोगों को संगठित किया और हर परिवार को एक एकड़ ज़मीन बाँटी। उन्हीं की कड़ी मेहनत से परिवारों को दो से तीन एकड़ ज़मीन और मिल पाई। उन्होंने बैंकों के साथ भी बातचीत की जिसकी वजह से 15,000 परिवारों को 15,000 एकड़ ज़मीन मिल पाई और इन ज़मीनों का रजिस्ट्रेशन महिलाओं के नाम किया गया। यही कारण है कि कृष्णम्माल, पूर्वी तंजौर ज़िले में 'अम्मा' के नाम से भी जानी जाती हैं।''

कृष्णम्माल का काम केवल दक्षिण तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने बिहार में भी लोगों को ज़मीन दिलाने का काम किया।

गांधी विचारक, पी वी राजगोपाल कहते हैं, ''आज भी आप बिहार में जाएंगे तो बहुत से लोग कहेंगे कि हम बोधगया आंदोलन में शामिल रहे हैं। ये बोधगया आंदोलन क्या है? मठ के विरोध में ग़रीब लोगों का आंदोलन। उसकी लीडरशिप जगन्नाथन और कृष्णम्माल के हाथों में थी। तमिलनाडु से बिहार जैसे इलाक़े में जाकर जहाँ की भाषा ही भिन्न है, हिन्दी भाषी इलाक़ा है और वहाँ के लोगों को संगठित करना। आंदोलन के माध्यम से लोगों को ज़मीन दिलाना तो आज हज़ारों ग़रीब लोग, मुसहर समाज के लोग, ग़रीब लोग ज़मीन पर बैठे हैं वो कृष्णम्माल और जगन्नाथन जी के प्रयास से हुआ है।''

इसके बाद साल 1981 में लैंड फ़ॉर टिलर्स फ्रीडम नाम की संस्था का गठन किया गया ताकि ग़रीब को कम दाम में ज़मीन दिलवाने में मदद की जा सके और उनकी जिंदगी में भी सुधार हो सके।

अब इस संस्था का कई देशों में नाम हुआ है और बाहर से भी कई लोग यहाँ आ रहे हैं।

अमेरिकी लेखक डेविड एलबर्ट दो साल तक कृष्णम्माल और इस संस्था के साथ काम कर चुके हैं।

डेविड एच एलबर्ट कहते हैं कि कृष्णममाल मुझे सफ़ेद खादी पहनाती थीं। यही मेरा रोल था। वे मुझे अपने साथ नेताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं और ज़मींदारों से मिलने लेकर जाती थीं। मेरा काम बहुत ही सिंपल था कि वहाँ जाना और तीन शब्द तमिल में कहना, चुपचाप कॉफ़ी पीना और बस बैठे रहना। इससे ये हुआ कि सरकारी अधिकारी घूस नहीं लेते थे। मैं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक हथियार था, तो मैं एक गुड लक टूल भी बन गया।

कृष्णम्माल को भूमि सुधार और आजीविका के अधिकार में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया है जिसमें पदमश्री भी शामिल है।

कृष्णम्माल जगन्नाथन 94 साल की हैं। वे अब जल्दी थक जाती है, लेकिन ग़रीबों को ज़मीन दिलाने की मुहिम में वे अभी भी लगी हुई हैं।

वे फ़िलहाल अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं जिसमें उनका सपना भूमिहीन लोगों के लिए 10,000 घर बनाने का है।

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