62 साल की महिला किसान ने 6 साल लड़ी कानूनी जंग, 5 IAS अफसरों को दिलवाई सजा
चार मौजूदा और एक रिटायर आईएएस अफसरों (IAS Officers) को कोर्ट की अवमानना का दोषी (Contempt of Court) करार देते हुए जेल की सजा अथवा जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई गई है।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra
Pradesh High Court) ने
गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए राज्य के चार मौजूदा और एक रिटायर आईएएस
अफसरों (IAS Officers) को कोर्ट की अवमानना का दोषी (Contempt
of Court) करार
देते हुए जेल की सजा अथवा जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई है। सभी को यह सजा 62 साल की एक किसान की याचिका पर सुनवाई के बाद
सुनाई गई। इस बुजुर्ग महिला किसान ने अपने हक की कानूनी जंग करीब 6 साल तक लड़ी।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए आईएएस अफसरों में मुख्यमंत्री
के अतिरिक्त सचिव और एसपीएस नेल्लोर जिले के पूर्व कलेक्टर रेवु मुत्याला राजू, पूर्व कलेक्टर एमवी
शेषगिरी बाबू, एसपीएस नेल्लोर जिला कलेक्टर केवीएन चक्रधर, प्रमुख वित्त सचिव शमशेर सिंह
रावत और रिटायर आईएएस अधिकारी मनमोहन सिंह शामिल हैं।
मनमोहन सिंह को एक हजार रुपये के जुर्माने के साथ चार हफ्ते की जेल की सजा
सुनाई गई। राजू को दो हफ्ते की जेल के साथ 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई
गई। रावत पर 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया और एक महीने की जेल की सजा
सुनाई गई। बाबू और चक्रधर पर दो-दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
हाईकोर्ट का आदेश एसपीएस नेल्लोर जिले की किसान सविथ्रम्मा द्वारा दायर एक
अवमानना याचिका पर आया है, जिससे पट्टेदार के रूप में 2015 में राजस्व अधिकारियों ने जमीन
ले ली और मुआवजे का भुगतान नहीं किया। महिला किसान ने इस मामले में लोकायुक्त
(भारतीय संसदीय लोकपाल) को एक बार और हाईकोर्ट में दो बार याचिका और एक अवमानना
केस दर्ज किया था। इसके बाद उन्हें इस साल मार्च में मुआवजे की राशि दी गई है।
फैसले में जस्टिस बट्टू देवानंद ने मामले को आम जनता की समस्याओं के प्रति
नौकरशाहों की सुस्ती और संवैधानिक न्यायालय के आदेशों के प्रति उनके जानबूझकर
अवज्ञाकारी रवैये का उत्कृष्ट उदाहरण कहा है।
आदेश में कहा गया कि कोर्ट ने पहले ही देखा कि 2015 में याचिकाकर्ता से अग्रिम
मुआवजे के द्वारा भूमि छीन ली गई थी। इसलिए 2015 से याचिकाकर्ता को बुढ़ापे में
अपने जीवनयापन के लिए गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने
राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को लागत के रूप में 1 लाख रुपये का भुगतान करने का
आदेश दिया।
सविथ्रम्मा के पति तल्लापका वेंकटैया को एक पट्टेदार के रूप में 3 एकड़ जमीन दी गई थी, इसका मतलब है कि
उन्होंने भूमि के लिए भू-राजस्व का भुगतान करने के साथ सीधे सरकार के अधीन भूमि ली।
जब अप्रैल 1998 में उनकी मौत हो गई तो भूमि का कब्जा सविथ्रम्मा को दे दिया गया।
हालांकि इस भूमि को जून 2015 में राजस्व अधिकारियों द्वारा ले लिया गया था और बिना किसी
नोटिस या मुआवजे दिया क्षेत्रीय केंद्र के निर्माण के लिए राष्ट्रीय मानसिक
विकलांग संस्थान को आवंटित किया गया था। सविथ्रम्मा ने तब लोकायुक्त के पास
अधिग्रहण के खिलाफ शिकायत दर्ज की, और जवाब में नेल्लोर के जिला
कलेक्टर ने दिसंबर 2016 में अदालत को बताया कि सविथ्रम्मा को अन्य पट्टादारों के
साथ उचित जांच के बाद मुआवजा दिया जाएगा।
हालांकि, मुआवजे का भुगतान करने के बजाय, तहसीलदार वेंकटचलम ने उन्हें 5 नवंबर 2016 को एक नोटिस जारी
किया, जिसमें पूछा गया कि
उन्हें दिया गया पट्टा रद्द क्यों नहीं किया जाना चाहिए। उनपर यह आरोप लगाया गया
कि वह जमीन पर खेती नहीं कर रही थीं।
सविथ्रम्मा ने इसके बाद आंध्र
प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने फरवरी 2017 में
एक आदेश पारित किया, जिसमें उसे तीन महीने के भीतर मुआवजे का भुगतान
करने का निर्देश दिया गया। लेकिन जब उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया तो फरवरी 2018 में उन्होंने
हाईकोर्ट में अवमानना का केस दायर किया था।
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