फ़ेसबुक को दिल्ली दंगों पर जो समन गया, वो सही: सुप्रीम कोर्ट
भारत के
उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विधानसभा की 'शांति
एवं सौहार्द समिति' द्वारा फ़ेसबुक को भेजे गये समन
को सही ठहराया और कहा कि दिल्ली दंगों के मामले में अगर दिल्ली विधानसभा की समिति
फ़ेसबुक से सवाल-जवाब करना चाहती है तो इसे क्यों रोका जाना चाहिए।
बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली
पीठ ने इस बारे में कई बातें कहीं।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि लोकतांत्रिक सरकार की आधारशिला
चुनावी प्रक्रिया है और सोशल मीडिया के कारण होने वाले हेरफ़ेर से उनको ख़तरा होता
है। न्यायालय ने कहा कि डिजिटल मंच कई बार पूरी तरह अनियंत्रित होते हैं और उनकी
अपनी चुनौतियाँ होती हैं।
अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़, शीर्ष अदालत ने कहा कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक देश इसके
दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं और वो चिंतित हैं।
पीठ ने कहा कि दिल्ली विधानसभा और इसकी समितियों के पास विशेषाधिकार है कि वो
इन मंचों के सदस्यों एवं बाहरी लोगों को पेश होने के लिए बुलाए।
शीर्ष अदालत ने 188 पन्नों के अपने फ़ैसले में ये टिप्पणी
की। अदालत ने फ़ेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजित मोहन एवं अन्य की
तरफ से दायर याचिका को ख़ारिज करते हुए यह टिप्पणी की। अपनी याचिका में उन्होंने
दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द समिति द्वारा जारी समन को चुनौती दी थी।
पिछले
साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के सिलसिले में समिति ने उन्हें गवाह के तौर पर
पेश होने में विफल होने के बाद ये समन दिया था।
पीठ ने कहा कि ''इन मंचों
का प्रभाव सीमा पार की आबादी तक होता है। फ़ेसबुक ऐसा ही एक मंच है।''
सर्वोच्च अदालत की इस पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी
और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय भी शामिल थे।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि डिजिटल युग में सूचना विस्फोट नई
चुनौतियाँ पैदा करने में सक्षम है जो ऐसे मुद्दों पर बहस को अलग दिशा दे देता है
जहाँ विचार पूरी तरह बंटे हुए होते हैं और उदारवादी लोकतंत्र के सफलतापूर्वक काम
करने के लिए आवश्यक है कि नागरिक सूचनाओं के आधार पर निर्णय कर सकें।
न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सोशल
मीडिया की क्षमता काफ़ी ज़्यादा है जो सीमाओं से परे है और ये बहुराष्ट्रीय
कॉरपोरेट हैं जिनके पास काफ़ी संपत्ति होती है और वो प्रभाव डालने में सक्षम होते
हैं।
भारत में फ़ेसबुक सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है
जहाँ इसके क़रीब 27 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं।
दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द समिति की यह दलील है
कि अत्यधिक शक्तियों के साथ ज़िम्मेदारी भी आवश्यक है। इसलिए फ़ेसबुक जैसे मंचों
को उन लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए जिनसे वो ताक़त पाते हैं। फेसबुक ने जहाँ
लोगों को आवाज दी है और राज्य की पाबंदियों से बचने का रास्ता दिया है वहीं हमें
यह तथ्य नहीं भूलना चाहिए कि यह विध्वंसकारी संदेशों और विचारधाराओं का मंच भी बन
गया है।
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